ओस से नम हुए रास्तों पर नवम्बर किसी फूल की तरह छप रहा है। हर माह एक नया सौंदर्य लेकर आता है। कार्तिक मास उतर गया है, बादलों का घूंघट हौले से उतार कर, चम्पई फूलों से रूप संवार कर जब आकाश धरती के माथे पर चुम्बन टांक देता है तो वह मखमली छुवन नवम्बर बन कर सारी फिज़ाओं में फैल जाती है।
धूप गुनगुनाने लगती है, शीत मुस्कुराती है। अनायास ही मौसम की खुमारी मन को अकुलाने लगती है। संसार भर का गुड़ आग में भर जाता है। आग मीठी लगने लगती है।
हवाओं में संदल, छितवन और हरसिंगार की मादक गंध है। बीते त्यौहार की उमंग का कोष धीरे धीरे खर्च होता है। मोर के पंख सिमट गए हैं, रेशमी धागों में कुछ मन बंधने लगे हैं, उनकी दो बातों में ही सारा दिन गुम हो जाने लगा है।
शाम के कोमल पाँवों में रात की ओट लेकर सूरज लाली लगा रहा होता है और शबनमी चाँद मुस्कान की तरह उभरता है, सितारों की कतार रोशन हो उठती है... ऐसा लगता