राम जी आज पंचवटी में आ गए।
पंचतत्वों से बनी यह देह ही पंचवटी है। यहाँ जितने प्रकार के देह हैं, सब पंचवटी ही हैं। इन सबमें यह मनुष्य देह रूपी पंचवटी सबसे कीमती भी है, तो इसी में सबसे अधिक माया का विस्तार भी है।
यह दुनिया पंच का प्रपंच ही तो है। पंचवटी में ही सती जी को भ्रम हुआ, वे सती से नकली सीता बन गईं। इसी में रावण की बहन सूर्पनखा रूप बदल कर आई। यहीं खर दूषण और त्रिशिरा, चौदह हजार राक्षसों के साथ आए। और भी, यहीं सीताजी छाया सीता हो गईं, मारीच मायामृग बन भगवान की आवाज निकालने लगा।, रावण संतवेश बनाकर सीताजी का हरण कर ले गया, भगवान को भी रोना पड़ा।
देखो, हम पंचवटी में ही हैं। यह पंचवटी ही हमारे रहने का स्थान है। हम दो प्रकार के घरों में रहते हैं, हम एक चलते फिरते घर को लेकर, एक खड़े घर में रहते हैं। आप दोनों में आराम से रहो, बस इतनी सावधानी रखना कि इन्हें अपना मत समझना।
यह अपने